तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन

तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन

     

           

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                तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन 

तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो ! 

कोई नहीं सृष्टि में तुम सा माँ, तुम बिलकुल माँ जैसी हो।

ब्रह्मा तो केवल रचता है, तुम तो पालन भी करती हो। 

शिव हरते तो सब हर लेते, तुम चुन-चुन पीड़ा हरती हो।

 किसे सामने खड़ा करूँ मैं,

और कहूँ फिर तुम ऐसी हो । माँ, तुम बिलकुल माँ जैसी हो ॥

ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिन सूखे, सारे देव भक्ति के भूखे ।

 लगते हैं तेरी तुलना में, ममता बिन सब रूखे-रूखे । 

पूजा करे, सताए कोई, सबकी सदा तुम हितैषी हो माँ, 

तुम बिलकुल माँ जैसी हो ॥

 कितनी गहरी है अद्भुत -सी, तेरी यह करुणा की गागर ।

 जाने क्यों छोटा लगता है,. तेरे आगे करुणा-सागर।

जाकी रही भावना जैसी, मूरत देखी तिन्ह तैसी हो । 

माँ, तुम बिलकुल माँ जैसी हो ॥

मेरी लघु आकुलता से ही, कितनी व्याकुल हो जाती हो। 

मुझे तृप्त करने के सुख में, तुम भूखी ही सो जाती हो।

 सब जग बदला मैं भी बदला, तुम तो वैसी की वैसी हो । 

माँ, तुम बिलकुल माँ जैसी हो ॥

तुम से तन मन जीवन पाया तुमने ही चलना सिखलाया, 

पर देखो मेरी कृतघ्नता काम तुम्हारे कभी न आया।

 क्यों करती हो क्षमा हमेशा, तुम भी तो जाने कैसी हो । 

माँ, तुम बिलकुल माँ जैसी हो ॥ 

-शास्त्री नित्यगोपाल कटारे


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