बोर्ड परीक्षा में सफलता के अचूक मंत्र

बोर्ड परीक्षा में सफलता के अचूक मंत्र

 बोर्ड परीक्षा में सफलता के अचूक मंत्र

यह पुस्तक क्यों ?


बोर्ड परीक्षा में "अधिक-से-अधिक अंक अर्जित करना" वर्तमान समय में छात्रों का एकमात्र एवं अंतिम लक्ष्य बन गया है। वर्ग दशम् की बोर्ड परीक्षा किसी भी छात्र के भविष्य के दिशा-निर्धारण की कड़ी में प्रथम लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण सौढ़ी है। अच्छे अंकों के लक्ष्य हेतु विद्यार्थी प्रायः कड़ी मेहनत करते हैं। फिर भी कड़ी मेहनत के बाद आज की प्रतिस्पर्धा के दौर में कुछ अंकों या प्रतिशत का अंतर छात्र के सफलता को असफलता में बदल देता है।


अतः, यह कहना उचित होगा कि आज के दौरे में सफलता के मायने विल्कुल ही परिवर्तित हो गये हैं। आज बात सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं बनती। अनेकों शोध एवं अध्ययनों से भी पता चला है कि कड़ी मेहनत के बाद भी एक औसत विद्यार्थी अपने मस्तिष्क क्षमता का 20 प्रतिशत ही उपयोग कर पाता है, जिसका परिणाम उसके बोर्ड परीक्षा के रिजल्ट में एक परिलक्षित होता है। स्वर्णिम सफलता के लिए बहुत सारे घटक एवं अध्ययन की विभिन्न तकनीके हैं, जिनकी जानकारी इस पुस्तक के माध्यम से दी जा रही है।


इस पुस्तक में दी जा रही जानकारियों एवं तकनीकों पर अमल कर विद्यार्थी अपना श्रेष्ठ-से-श्रेष्ठ प्रदर्शन वर्ग दशम् की बोर्ड परीक्षा में दे सकते हैं। इन तकनीकों को अपने अध्ययन, परीक्षा की तैयारी एवं परीक्षा के दौरान उपयोग कर आप अपनी क्षमता का पूर्णरूपेण दोहन कर उत्कृष्ट श्रेणी में सफलता प्राप्त करेंगे, इसका हमें पूर्ण विश्वास है।


इन सफलता के अचूक मंत्रों को आजमा कर बहुत सारे छात्र अपने स्कूल, कॉलेज एवं विभिन्न कैरियरों में सफलता के शिखर पर हैं। तो आइये, आज भी "बोर्ड परीक्षा में सफलता के अचूक मंत्र" को अपनी तैयारी में अपना कर, अपना सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन दे, एक सफल छात्र बन जाएँ।


हार्दिक शुभकामनाएँ !


अनुक्रमणिका


1. सफल छात्र की विशेषताएँ


2. कैसे हासिल करें पूरी सफलता ?


3. अपनी क्षमता को पहचानें पहल करें और आगे बढ़ें


4. मन पर लगाएँ लगाम


5. अधिक अंकों के लिए जरूरी अधिक मेहनत


6. छात्र पढ़ाई के सही तकनीक को अपनाएँ


7. योजनाबद्ध तरीके से करें तैयारी


8. इनका ध्यान रखेंगे तो लक्ष्य प्राप्ति में होंगे सफल


9. टाईम मैनेजमेंट है सबसे जरूरी


10. पुनरावलोकन (रिविजन प्लान) की मदद जरूर लें


11. परीक्षा की तैयारी: क्या करें, क्या न करें ?


12. परीक्षा की तैयारी: क्या खाएँ, क्या न खाएँ ?


13. कैसे बचे परीक्षा के तनाव से


14. बच्चे कोचिंग क्लास कब बन्द करें ?


15. प्रस्तुतीकरण दिलाये आपको विशेष अंक


16. बेहतर नतीजे के लिए हिन्दी को न करें नजरअंदाज


17. अंग्रेजी की तैयारी कैसे करें ?


18. विज्ञान को समझें, रटे नहीं


19. गणित में अच्छे अंक लाने का हिट फार्मूला


20. कैसे करें सामाजिक विज्ञान में बेहतरीन प्रदर्शन ?


🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟

बोर्ड परीक्षा में सफलता के अचूक मंत्र


सफल छात्र की विशेषताएँ


छात्र राष्ट्र का भविष्य होते हैं। इस भविष्य की आधारशिला वत्र्तमान में ही रखी जाती है। विद्यार्थी की खूबियाँ या विशेषताएँ ही उनके भावी कैरियर का मार्ग तय करती है। तो एक अच्छा छात्र कौन हैं? एक अच्छे छात्र में कौन-सी खूबियाँ होनी चाहिए? परिभाषिक रूप से 'छात्र' का अर्थ उस व्यक्ति से लिया जाता है, जो कुछ सीखता है। बोलचाल में स्कूल-कॉलेज वा विश्वविद्यालय जाने वाला व्यक्ति 'छात्र' कहलाता है।


एक छात्र को सबसे अलग कैसे देखा जा सकता है? यहाँ चार 'A' बहुत महत्त्व रखते हैं। प्रत्येक छात्र को इन्हें पाने का


प्रयत्न करना चाहिए-


Attitude    (रवैया)


Academic   (शैक्षिक कौशल)


Awareness   (जागरूकता)


Accomplishment     (प्रवीण दक्षता)


🌟 कुछ सीखने की गंभीर इच्छा व समझने के लिए बौद्धिक परिश्रम करने की इच्छा ही रवैया कहलाती है। जब विषय में आपकी रूचि न हो या शिक्षक का पढ़ाने का तरीका आपको पसंद न आए, उस समय आप उन विषयों को कैसे लेते हैं, इससे भी आपका रवैया पता चलता है।


🌟 शैक्षिक कौशल में पठन-पाठन की क्षमता, स्रोतों के बुद्धिमत्तापूर्वक प्रयोग, तार्किक व गणितीय कौशल, पढ़ने की प्रभावी आदतों, सम्प्रेषण की क्षमता, बोलने व लिखने की योग्यता को शामिल कर सकते हैं।


🌟 आसपास की दुनिया में क्या हो रहा है, आपको इसके लिए जागरूक होना होगा ओर इसे बुद्धिमत्तापूर्वक अपनी शिक्षा से जोड़ना होगा। यदि आप सामाजिक विज्ञान के छात्र है तो आप जो भी पढ़ रहे हो, उसे दैनिक जीवन एवं राष्ट्रीय, विश्व राजनीति से जोड़ कर देखें। विज्ञान पढ़ते हों तो उसके सिद्धांतों का रोजमर्रा के जीवन से जोड़ें, आप पाएँगे कि अपने आसपास से ही कितनी तरह के उदाहरण खोजे जा सकते हैं।


🌟 आप अपनी समझ के सफल प्रयोग से प्रवीणता दर्शा सकते हैं। इसका प्रमाण है-


आपने नई समस्याओं व चुनौतियों के विषय में जो सीखा, उसका सही व आत्मविश्वास से युक्त प्रयोग। 

बोलने व लिखने की समझ का स्पष्ट व प्रभावी सम्प्रेषण।

ऐसी जानकारी, कौशल व समझ का संग्रह, जो कक्षा के बाहर, जीवन में भी आपका साथ निभा सके।


एक सफल छात्र की विशेषताएँ


🌟 योग्यता: एक योग्य छात्र में इतनी योग्यता होती है कर सके। कि वह रचनात्मक रूप से लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपनी शिक्षा का प्रयोग कर सके | 


🌟 आत्मानुशासन हर छात्र को अनुशासन का महत्त्व समझना चाहिए। किसी भी काम को टालने (गृह कार्य/परियोजना कार्य लिखने या किताब पढ्ने) से उसकी योग्यता पर नकारात्मक प्रभाव पड़‌ता है और वह अपने लक्ष्य तक पहुँचने में असफल हो जाता है।


🌟 याद करने की बजाए समझने की क्षमता है विभिन्न शोध के परिणाम कहते हैं कि छात्र को अपना पाठ रटने के बजाए

समझने पर जोर देना चाहिए। याद किये गये तथ्य व सिद्धांत तो स्कूल या कॉलेज के दिनों तक ही साथ निभाते हैं लेकिन जो चीज एक बार समझ में आ जाती है वह जिन्दगी भर के लिए मस्तिष्क पटल पर एक अमिट छाप छोड़ देती है। इसके अतिरिक्त एक अच्छे छात्र में निम्नलिखित विशेषताएँ भी होनी चाहिए-


🌟 पहल: बिना कहे काम करने के लिए आगे आना। अच्छे छात्र काम दिए बिना ही आगे बढ़कर उसे कर दिखाते हैं। वे प्रयोगशाला में काम करते समय, सिर्फ निर्देशों पर ध्यान देने के बजाए नये प्रयोग व आविष्कार करने में भी रूचि रखते हैं। वे हर अवसर को बड़ी ललक से अपनाते हैं। यदि कक्षा से बाहर का भी कोई काम हो तो वे बेहिचक उसे करते हैं।


🌟 रुचियों का विस्तार: स्कूल-कॉलेज में आपको नई चीजों की खोजबीन व रुचियों का दायरा बढ़ाने के कई अवसर मिलते हैं। आपको ऐसा पुस्तकालय, उपकरण व वातावरण फिर कभी नहीं मिलेगा। यदि आप चाहें तो वहाँ होने वाली पाठ्‌येत्तर गतिविधियों से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। यदि आप हमेशा अपने ही मग्न रहने वाले लोगों में हैं तो कुछ नया या अनजाना काम करने की कोशिश न करें।



🌟 खुला हो दिमाग : आपको नये विचारों व उपायों के प्रति आग्रही होना चाहिए। ये नहीं कि आप हमेशा नये विचारों की खोज में ही लगे रहें। कहने का अर्थ यह है कि कोई भी नया विचार सामने आये तो उसे अपने तर्क व विवेक की कसौटी पर कसने के बाद अपनाने में देर न करें।


🌟 मन की बुरी आदत: सिर्फ जानकारी पा लेना ही शिक्षा नहीं कहलाती। इसमें नई जानकारी पाने, मूल्यांकन व विश्लेषण करने की योग्यता भी शामिल है। इस समय हम चारों ओर से जानकारी के भार से दबे हैं जिनमें से काफी कुछ अधूरा, गलत और भ्रामक है। पुस्तकालय की 95% पुस्तकें नष्ट हो जाएँ, तो भी मानवीय ज्ञान को कोई हानि नहीं होगी लेकिन इस श्रेणी में कौन-सी पुस्तकें आती हैं, उन्हें छाँटना मुश्किल होगा। हम उन लोगों से घिरे हैं जो हमें कुछ बेचना चाहते हैं, कोई नया सामाजिक या राजनीतिक विचार देना चाहते हैं, हमें दूसरे मत या दर्शन में रूपांतरित करना चाहते हैं वगैरह-वगैरह। हमें इस जानकारी के घटाटोप में सही और गलत को पहचानना होगा।


🌟 नियामक : आप जितना सीखते जाएँगे, उतना ही नियामक हो जाएँगे। यदि कहीं लिखा है कि 'इसे पढ़े' तो आपको उसे शब्द दर शब्द पढ़ने की जरूरत नहीं रहेगी। आपको जो कुछ भी दिखाया जाएगा आप उसी पर निर्भर नहीं रहेंगे। आप स्वयं कई बातों का हल खोज निकालेंगे। आप बिना किसी उलझन के पहचान लेंगे कि वक्ता या लेखक क्या कहना चाहता है। आप किसी भी बात का छिपा अर्थ जान लेंगे और खास या महत्त्वपूर्ण व गैर जरूरी बातों में फर्क करना सीख लेंगे।


🌟 उद्देश्यपरकता: हम सब अक्सर जब पढ़ना शुरू करते हैं तो बहुत कुछ ऐसा सीखना ही नहीं चाहते जो हमें गैर-जरूरी लगता है। शिक्षा हमारे उद्देश्य व दृष्टिकोण को नये-नये आयाम व विस्तार देती है। हमें पता चलता है कि शैक्षिक स्तर पर हमारी निजी राय व विचारों का कोई मोल नहीं हैं। हमें पता चलता है कि दूसरे लोग व संस्कृक्तियाँ किस तरह एक ही बात के अलग-अलग अर्थ निकालते हैं। हम सीखते हैं कि सारी दुनिया हमारे आसपास ही नहीं घूमती। हम रहें या न रहे, सब कुछ यूं ही चलता रहेगा। शिक्षा से हमारे भीतर विनय एवं सहनशीलता आती है।


🌟 नम्रता : कोई जितना सीखता है, उसे उतना ही एहसास होता है कि अभी कितना कुछ सीखना बाकी है या वह जो जानता था, उसका कोई अर्थ नहीं था। बहुत कुछ जानना या सीखना अच्छी बात है। लेकिन हर व्यक्ति को अपने ज्ञान की सीमाएँ भी पता होनी चाहिए। कई ऐतिहासिक भूलें इसी वजह से हुई कि लोग अपनी शिक्षा व ज्ञान की हदों से परे चले गये थे। जन्मजात प्रतिभा भी आपके शिक्षण में काफी काम आती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप अपने-आप एक अच्छे छात्र बन जाएँगे। प्रयत्न के बिना कुछ नहीं मिलता। अतः आपको सोच-समझ कर हर कदम आगे बढ़ाना होगा।



कैसे हासिल करें पूरी सफलता


थोड़ा अजीब सा लगता है ना आधी सफलता प्राप्त करना। सफलता क्या आधी हो सकती है? कुछ लोग मानते हैं कि पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हो तो क्या हुआ, हमने सफलता प्राप्त करने के लिए मेहनत की और प्रयास किया। वहाँ तक नहीं पहुँच पाएँ तो क्या हुआ? दरअसल यह एक अलग तरह की मानसिकता है जो कई युवाओं में भी देखने में आती है। वे सफलता के लिए प्रयास करते हैं और मन से करते हैं पर इतना ही करते हैं जितना सफलता प्राप्ति के लिए जरूरत होती है।


फिर उन्हें सफलता मिल ही जाना चाहिए मन में यह प्रश्न आना स्वाभाविक है, लेकिन ऐसा नहीं होता, अगर आपको 100 प्रतिशत सफलता प्राप्ति करना है तो आपका लक्ष्य 150 प्रतिशत होना जरूरी है ताकि आप 100 प्रतिशत पूर्ण सफलता प्राप्त करें।


बोर्ड की परीक्षा की तैयारी करते समय अक्सर युवा यह गलती कर जाते हैं कि जितना जरूरी है उतना ही पढ़ते हैं पर जब परीक्षा देने की बारी आती है तब वे अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं पाते बल्कि 60 से 70 प्रतिशत तक ही दे पाते हैं। परिणाम आने के बाद वे यह जरूर कहते हैं कि चलो 70 प्रतिशत तो आये हैं अगली बार के लिए थोड़ी और ही मेहनत करना है। लेकिन यह मानसिकता क्यों नहीं आ पाती है कि पहली बार में ही जोरदार मेहनत की जाए और अपना 150 प्रतिशत दे तब जाकर 100 प्रतिशत सफलता हासिल होगी।


हम प्रवेश परीक्षा पास कर गए, बस इंटरव्यू में रह गए पर परीक्षा तो पास को ना... इस प्रकार के उत्तर युवाओं के पास आम होते हैं। वे अपने आप को आधा सफल मानकर ही पूर्ण सफलता का जश्न भी मना लेते हैं। पर इस बात का गौर नहीं करते हैं कि आखिर आधी सफलता ही क्यों मिली और क्या आधी सफलता पूर्ण सफलता है या पूर्ण असफलता है।


एक युवा साथी थे। उन्होंने प्रतियोगी परीक्षा के लिए अपनी ओर से पूर्ण मेहनत की और प्रवेश परीक्षा पास हो गए पर बाद में आगे नहीं बढ़ पाएँ। पर महज प्रवेश परीक्षा पास करने के कारण ही कई हम-उम्र युवा साथी उनके पास मार्गदर्शन के लिए आये। वे मार्गदर्शन भी देने लगे और इस ओर उनका ध्यान ही नहीं गया कि उन्हें स्वयं भी आगे बढ़ना है और सफलता का अंतिम पड़ाव पार करना है। इसका परिणाम यह हुआ कि वे वहीं-के-वहीं रहे और बाकी लोग आगे निकल गए।


जिन्दगी में सफलता कितनी, कैसी और कब हो इसका कोई पैमाना तो नहीं होता... आपको स्वयं ही तय करना होता है कि कितनी सफलता आपको प्राप्त करना है और कितना आगे आपको बढ़ना है। कई बार इसमें व्यक्ति स्वयं को कम आँकता है तो कई बार ज्यादा। समस्या उनकी होती है जो दुविधा में रहते हैं जो आधी सफलता को भी पूर्ण सफलता मानकर जिन्दगी के साथ समझौता कर लेते हैं।


ऐसे लोगों को स्वयं ही जागना होगा और अपने आधे-अधूरे पड़े लक्ष्य की ओर पुनः बढ़ने के लिए स्वयं में हिम्मत जुटानी होगी तभी पुनः बात बन पाएगी। थोड़ी-सी सफलता प्राप्त करने के बाद ही आपके आसपास के लोग आपको इतना चढ़ा देंगे कि आपको लगेगा कि आपने जो किया है वह महान कार्य है।


अगर आप ने सही में ऐसा मान लिया तब आप अपनी मंजिल को भूलकर आत्ममुग्धता की अवस्था में आ जाएँगे और असल लक्ष्य की ओर आपका ध्यान नहीं जाएगा। इस कारण दोस्तों जब भी सफलता मिले चाहे छोटी हो या बड़ी अपने आप से यह प्रश्न जरूर पूछें कि क्या यही पूर्ण सफलता है या मंजिल अभी भी दूर है?


अपनी क्षमता को पहचानें : पहल करें और आगे बढ़ें


डरना मनुष्य की आम प्रवृत्ति है और इस डर में भी उसे एक अलग तरह का सुख मिलता है, डर का सुख। यह सुख और कुछ नहीं किसी बड़े काम या पहल न करने का सुख होता है। अगर आप कोई भी पहल करके या जोखिम लेकर काम न करेंगे तब जिन्दगी में आगे ही नहीं बढ़ सकते। परन्तु मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि किसी भी तरह के बदलाव को खासतौर पर जिसमें काफी सारी हिम्मत और जोखिम शामिल हो, तब उस काम को नहीं करने का ही मन बना लेता है।


कैरियर की बात हो या जिन्दगी में कुछ नया करने की बात हो मन में शंका उठना स्वाभाविक है और उस शंका का निवारण भी हमें ही करना होता है। कुछ साथी ऐसे होते हैं जो अपनी बात पर कायम रहते हैं, फिर चाहे सफलता मिले या असफलता वे सबकुछ अपने दम पर अपनी हिम्मत पर करने का माद्दा रखते हैं। जबकि कुछ साथी किसी अन्य द्वारा भी जरा-सी शंका जाहिर करने पर अनिर्णय की स्थिति में आ जाते हैं जबकि वे स्वयं इस बात से आश्वस्त रहते हैं कि जो काम वे करने जा रहे हैं वह अच्छा है और ऐसा किया जाना चाहिए। परन्तु केवल शंका भर जाहिर करने से सब मामला गड़बड़ हो जाता है।


किसी भी कार्य को करने के पहले योजनाबद्ध तरीके से चलना चाहिए और सोच-समझकर कार्य करना ही चाहिए पर कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आन पड़ती हैं जब सोचने-समझने का समय नहीं बल्कि केवल निर्णय लेना होता है, ऐसे समय व्यक्ति की असल परीक्षा होती है। व्यक्ति परिस्थितियों से डर बहुत जल्दी जाता है और कई बार जरा-सी प्रेरणा ही उसे इन विपरीत परिस्थितियों से सामना करने की प्रेरणा भी देती है।


'स्वामी विवेकानन्द' जब देशाटन पर निकले थे तब काशी भी गये थे। दिन भर सत्संग चलता रहता था। विभिन्न आश्रमों में जाना लगा ही रहता था। स्वामीजी का नियम था कि प्रतिदिन अलग-अलग मंदिरों में दर्शन करने जाते थे। स्वामीजी खासतौर पर दुर्गा देवी के मंदिर जरूर जाते है। एक दिन मंदिर से दर्शन कर बाहर आये और अपने गंतव्य की ओर चल पड़े तब उनके पीछे बंदरों का झुण्ड लग गया।


स्वामीजी चोगा पहनते थे और बन्दरों को लगा कि चोगे की जेबों में खाने के लिए कुछ रखा हो। स्वामीजी ने बंदरों के इस झुण्ड से पीछा छुड़ाने के लिए अपने कदमों को तेज कर दिया परन्तु बन्दर थे कि मान ही नहीं रहे थे वे और तेजी से आगे बढ़ते आ रहे थे। स्वामीजी ने कदम और तेज कर दिए और एक स्थिति ऐसी आ गई कि स्वामीजी को दौड़ लगाना पड़ा। वे काफी देर तक भागते रहे। अचानक एक मोड़ पर एक वृद्ध महात्मा सामने से आ रहे थे उन्होंने स्वामीजी की स्थिति देखी और कहा कि नौजवान, रूक जाओ, भागों नहीं बन्दरों की ओर मुँह करके खड़े हो जाओ। इस वाक्य ने स्वामीजी को प्रेरणा दी और वे बन्दरों की ओर मुँह करके खेड़े हो गये।


यह देखकर बन्दर ठिठक गए और कुछ ही समय में इधर-उधर हो गए। इस घटना से स्वामीजी ने भी प्रेरणा ली कि जब भी विपरीत परिस्थितियाँ सामने हों तब उसके सामने मुँह करके खड़े हो जाओ और मन से डर निकालकर उनका सामना करोगे तब सफलता निश्चित है।


मन पर लगाएँ लगाम


यदि आपको खुश रहना है, तो अपने मन को उस काम पर एकाग्रचित करना शुरू करें जो काम आप इस समय कर रहे हैं। मन की तासीर है भटकना और बड़े-बुजुर्ग हमें सदियों से कहते आये हैं कि इस मन को भटकने से रोको, एकाग्र करो। तभी परम् सुख प्राप्त होगा। इसके विपरीत यह भोगा हुआ सत्य है कि हमें दिवा-स्वप्न आनंदित करते हैं। दिवा स्वप्न यानी जो काम हम कर रहे हैं, उससे मन का भटकाव।


तो बात का निचोड़ यह है कि संत-महात्माओं के वचन हमारे व्यक्तिगत अनुभव से मेल नहीं खाते। लेकिन जरा ठहरिये। हाल ही में बिल्कुल आधुनिक यंत्र की मददद से एक ऐसा वैज्ञानिक अनुसंधान हुआ है, जो कह रहा है कि हमारे ज्ञानी-ध्यानियों की राय एकदम सही है।


अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय के मैथ्यू किलिंग्सवर्थ और डैनियल गिलबर्ट बाकायदा सवा दो हजार लोगों का अध्ययन कर इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि यदि आपको खुश रहना है, तो अपने मन को उस काम पर एकाग्र करना शुरू करें जो काम आप इस समय कर रहे हैं।


इन दोनों मनोवैज्ञानिकों ने अपने एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर मित्र के साथ मिलकर 'ट्रैक योअर हैपिनेस' नाम से वेबसाइट तैयार की और लोगों को आमंत्रित किया कि वे अपने आईफोन के जरिए उनके सर्वे में शामिल हों। अपनी उम्र, शहर, नौकरी आदि के बारे में कुछ मूलभूत जानकारी देकर लोग इस शोध के लिए साइन अप हुए।


फिर उन्हें प्रतिदिन एक या अधिक बार आईफोन पर मैसेज करके कहा जाता है। कि वे उक्त वेबसाइट पर जाएँ और बताएँ कि इस समय वे क्या कर रहे हैं और कितने खुश हैं। साथ ही उन्हें यह भी बताना था कि क्या वे उसी काम के बारे में सोच रहे थे जो कर रहे थे या फिर किसी और चीज के बारे में। यदि किसी और चीज के बारे में सोच रहे थे तो वह प्रियकर थी, अप्रियकर या फिर सामान्य यानी न इधर, न उधर।


इस सर्वे के परिणाम चौकाने वाले आये। किलिंग्सवर्थ और गिलबर्ट ने पाया कि औसतन लोगों का मन 47 प्रतिशत मामलों में उस काम से भटक रहा था, जो वे कर रहे थे। इनमें दफ्तर या घर के काम करने, शॉपिंग करने, खाने, टीवी देखने आदि सहित तमाम किस्म के सार्वजनिक से लेकर अत्यन्त निजी किस्म के काम शामिल थे।


गिलबर्ट कहते हैं, 'यह सोचकर बड़ा अजीब लगता है कि भीड़ भरी सड़क पर जा रहे लगभग आधे लोग मानसिक स्तर

पर वहाँ हैं ही नहीं।'


अब प्रश्न उठता है कि कोई नीरस या बोझिल काम करते हुए किसी का मन भटके, यह तो बात समझ में आती है। लेकिन खुशी देने वाला काम करने के दौरान भी लोगों का मन कम ही सही लेकिन भटकता तो है. भला क्यों? साथ ही यह भी देखा गया है कि यह जरूरी नहीं है कि यदि खुशी देने वाला काम करने के दौरान मन भटका तो किसी ऐसे विचार की तरफ ही भटकेगा जो उससे भी ज्यादा खुशी देने वाला हो।


दूसरे शब्दों में कहें तो यह संभव है कि अपना प्रिय गाना सुनते-सुनते आपके मन में अचानक बिना कारण, सोमवार को दफ्तर में होने वाली तनाव भरी मीटिंग का ख्याल आ जाए।


गिलबर्ट का मानना है कि आपके द्वारा किया जा रहा कार्य आपको उतनी खुशी नहीं देता, जितना आपके मन में आ रहा विचार देता है और यदि आपका मन उसी कार्य पर एकाग्र है तो आपकी प्रसन्नता का स्तर सर्वाधिक है।


तो निष्कर्ष यही निकलता है कि मन को भटकने न दें, अन्यथा आपको खुशी का स्तर गिर जाएगा। पर जरा ठहरिये...! क्या यह स्थापित तथ्य नहीं है कि किसी जटिल समस्या का हल हमें अक्सर तब मिलता है जब हम किसी और कार्य में रत होते हैं? यानी मन मौजूदा काम से भटका तो समस्या हल हुई।


कई वैज्ञानिक आविष्कार भी इसी तरह हुए हैं। मतलब यह कि ऐसा भी हो सकता है कि मन भटकने से आप कुछ ऐसा कर बैठे जो दीर्घ काल में आपको भरपूर खुशियाँ दे। तो चलिए, अब यह हमने पूरी तरह आपके ऊपर छोड़ दिया कि आप अपनी एकाग्रता बढ़ाने की कोशिश करते हैं या फिर मन की लगाम खुली छोड़ देते हैं। मर्जी है आपकी.... आखिर खुशी है आपकी...।


अधिक अंकों के लिए जरूरी अधिक मेहनत


बदलते जमाने के साथ अब सफलता का पैमाना भी बदल गया है। अब 100 प्रतिशत की बात नहीं होती बल्कि 125 प्रतिशत मेहनत करने की बात होती है तब जाकर सफलता की गारंटी मानी जाती है। सफलता प्राप्त करने के लिए अब सभी अपनी ओर से जोर-शोर से मेहनत करते हैं, इस कारण प्रतिस्पर्धा भी काफी बढ़ गई है।


ऐसे में बोर्ड परीक्षा में उत्कृष्ट सफलता के लिए प्रयास कर रहे हों तो आपको 125 प्रतिशत मेहनत करना होगा तब जाकर 100 सफलता की आशा कर सकते हैं।


मेहनत करके सफलता पाना आदर्श स्थिति है। प्रत्येक युवा के मन में चाहे परीक्षा में उत्तीर्ण होना हो या फिर जॉय में सफलता प्राप्त करना, सपने पूर्ण होने जैसा है। पर क्या कभी आपने सोचा कि सफलता प्राप्त करने के दौरान जो मेहनत करते हैं उससे एक कदम आगे बढ़ने पर परिणाम क्या होगा?


उदाहरण के तौर पर कॉर्पोरेट वर्ल्ड में कम्पनियाँ अपने ग्राहकों को खुश करने के लिए न जाने कितने तरह के प्रयत्न करती हैं। वे अच्छी सेवा के अलावा ग्राहक को इस बात का गर्व अनुभव करवाती हैं कि वे


उसके ग्राहक हैं। चलिए एक छोटी-सी कहानी के माध्यम से समझते हैं।


एक बार एक व्यक्ति ने अपनी कार को गैराज पर सुधारने के लिए दिया। गैराज में कई लोग काम करते थे। इनमें एक युवा साथी भी था। गैराज में वह कार उसी के पास सुधरने के लिए आई। गाड़ी मालिक की गैराज मालिक ने शाम को आने के लिए कहा था। युवा साथी पूर्ण तन्मयता के साथ गाड़ी की खराबी दूर करने में जुट गया। उसके साथियों ने उससे कहा कि तुम इतनी मेहनत क्यों कर रहे हो गाड़ी शाम को देना है।


युवा साथी अपने काम में जुटा रहा। उसने न कवेल गाड़ी को बेहतरीन तरीके से सुधारा बल्कि उसने कार की सफाई इतनी अच्छी तरह से कर दी कि कार बिल्कुल नई जैसी लगने लगी। कार की सफाई के लिए कार मालिक ने नहीं कहा था और इस बात को लेकर उसके साथियों ने उसका खूब मजाक उड़ाया। युवा साथी ने इस मजाक को दिल में नहीं लगाया। शाम को गाड़ी मालिक जब कार लने आया तब आश्चर्य में पड़ गया कि उसकी कार बिल्कुल नई जैसी दिखने लगी।


गाड़ी मालिक ने पूछा की कार का काम किसने किया। गैराज मालिक ने युवा साधी की ओर इशारा किया। गाड़ी मालिक ने उस युवा साथी से बातचीत की और उससे यह पूछा कि आखिर तुमने किसके कहने पर गाड़ी की सफाई की। युवा साथी का कहना था कि वह बस अपना काम कर रहा था और उसे लगा कि गाड़ी को न केवल सुधारना चाहिए बल्कि उसे पूर्ण रूप से साफ करके ही गाड़ी मालिक को देना चाहिए। उसके जवाब से गाड़ी मालिक न केवल संतुष्ट हुआ बल्कि उसने ज्यादा वेतन पर अपनी फैक्टरी में उसे नौकरी दे दी।


यही बात हमारे परीक्षा की तैयारी में भी लागू होती है। छात्रों को अच्छे अंक और सफलता के लिए अधिक से अधिक उद्यम करना चाहिए। सही तकनीक, योजनावद्ध तरीके से किया गया स्वाध्याय एवं कड़ी मेहनत, हमें सफल छात्र की अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर सकता है।


अतः बोर्ड परीक्षा में सर्वोत्तम करने की चाहत रखने वाले छात्रों को भी अधिक मेहनत, सही दिशा एवं सही तकनीक के साथ करनी होगी।


छात्र पढ़ाई के सही तकनीक को अपनाएँ


जब हम पढ़ाई करते हैं तो कई बार कई विषय हमें कठिन लगते हैं। कभी किसी टॉपिक को समझने में दिक्कत आती है. कभी-कभी हम भूल जाते हैं, कभी हमारा पढ़ाई में मन नहीं लगता है, कभी हम परीक्षा में लिखकर तो आते हैं, लेकिन नम्बर कम आते हैं, तो कभी-कभी हम तनाव में आ जाते हैं।


आखिर क्या करें, जिससे हम अपने ज्ञान को बड़ा सके और सहजता के साथ, सरलता से पड़ाई कर सके एवं अपने ज्ञान में वृद्धि कर सके। इसके लिए वैज्ञानिक हमें कुछ तथ्य बताते हैं, जो पढ़ाई करने में हमें मदद करते हैं-


(1) पढ़ाई करते वक्त हर 40 से 50 मिनट के बाद एक ब्रेक जरूरी लें। ब्रेक में आप शारीरिक व्यायाम कर सकते हैं। योग कर सकते हैं, घूम सकते हैं, विश्राम कर सकते हैं। याद रखें आपको किसी से बात नहीं करना है, पढ़ाई के माहौल से बाहर नहीं आना है और मन को चंचल नहीं होने देना है। आप हल्का संगीत भी सुन सकते हैं। पानी जरूरी पीएँ। ब्रेक 5-7 मिनट से ज्यादा का नहीं होना चाहिए।


(2) पढ़ाई करते वक्त जो भी तथ्य आपको महत्त्वपूर्ण लगते हैं. उनके नोट्स बनाएँ, हाई लाइटर से उन्हें हाई लाईट करें, विभिन्न रंगों का उपयोग करें, उनके चित्र बनाएँ, चार्ट्स भी बना सकते हैं। किसी उदाहरण के द्वारा अपने दैनिक जीवन से जोड़ते हुए मनोरंजक तरीके से उसका एक काल्पनिक चित्र मस्तिष्क में बैठा ले। कठिन उत्तर को पहले सरल करें फिर बिन्दुवार उसे याद करें।


हमारा मस्तिष्क कठिन चीजों को नहीं समझ पाता हैं इसलिए हमें कठिन उत्तरों को पहले सरल करना होगा। वह चाहे हम हमारे दोस्त की मदद से करें, शिक्षक की मदद से करें या फिर शैक्षणिक सी.डी. की सहायता से उसे समझने का प्रयास करें।


हमारा मस्तिष्क रंगीन वस्तुओं को, बड़ी-बड़ी वस्तुओं को, दैनिक जीवन से हट कर मनोरंजक चीजों को, हमारे. जीवन से जुड़ी हुई वस्तुओं को ज्यादा अच्छे से याद रख पाता है, अतः हमें पढ़ाई करते वक्त इन तकनीकों को इस्तेमाल करना होगा। ताकि हम बेहतर तरीके से चीजों को समझ पाएँगे और नये तकनीक से अध्ययन की गये पाठ्य-सामग्रियों को याद करके परीक्षा में अच्छे से लिख पाएँगे।


(3) जिस समय आप सबसे ज्यादा ऊर्जावान महसूस करते हों, उस समय कठिन चीजों की समझने का प्रयास करें। इसके लिए प्रातः काल का समय अध्ययन के लिए सबसे उपयुक्त होता है। इस समय हमारा दिमाग बिल्कुल तरो-ताजा रहता है और हम चीजों को अच्छी तरह से याद कर सकते हैं या समझ सकते हैं। समझ में ना आने पर उसे किसी की सहायता से हल करें। जितनी देर हमने पढ़ाई की है उसका 10 प्रतिशत भाग कुछ अंतराल के बाद पुनरावलोकन के लिए दें। पुनरावलोकन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।


मान लीजिए आपने प्रातःकाल में 60 मिनट पढ़ाई की है। तो शाम को 10 मिनट का पुनरावलोकन अवश्य करें। पुनरावलोकन में आप महत्त्वपूर्ण विन्दुओं को दोबारा पढ़ सकते हैं। कुछ प्रश्नों को हल करके देख सकते हैं। अपने आप को उसे समझा सकते हैं। फिर अध्ययन किये गये पाठ को बिना पुस्तक या नोट्स कॉपी के मदद से एक कागज में याददाश्त के आधार पर लिख लें। इस प्रक्रिया के बाद उसे पुस्तक नोट्स कॉपी से मिला लें। देखें कि कितना आपने सही-सही लिखा है और क्या लिखना आपसे छूट गया है, इसकी जाँच आप स्वयं कर लें। इस प्रकार का पुनरावलोकन आपकी याददाश्त में स्थायित्त्व लायेगा।


(4) जब कभी भी पढ़ने का मन ना हो तो लिखने का अभ्यास करें, नोट्स बनाएँ, पुनरावलोकन करें, चार्ट्स बनाएँ, अपने स्वयं को जाँच लें, बचे हुए कार्यों को पूर्ण करें। कैसे भी करके अपने आप को पढ़ाई में व्यस्त रखें। थोड़ी देर बाद आपको पता ही नहीं चलेगा और आपका मन पढ़ाई में लग चुका होगा।


(5) किसी भी कठिन चीज को सरल करने का सबसे उत्तम तरीका है, कठिन विषयों को दूसरों को पढ़ाना इससे हमारे आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती हैं और हमारी कठिन बिन्दू हमें पता लग जाते हैं। फिर वे हमें जल्दी समझ में आ जाते हैं।


(6) रात में पर्याप्त नींद लें अन्यथा इसका प्रभाव आपकी क्षमता में पड़ेगा।


(7) भोजन हल्का, कम मिर्च मसाले का, बिना तला हुआ, घर का सुपाच्य होना चाहिए। संतुलित भोजन से हमें काफी मदद मिलती हैं। यदि हम स्वस्थ होंगे तो हम ज्यादा उत्साह के साथ अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ पायेंगे।


विद्यार्थी को अपनी ऊर्जा की बचत करनी चाहिए। ज्यादा बोलने से, भविष्य के बारे में सोचने से, भूतकाल का पश्चाताप करने से, मनोरंजन करने से, तर्क-वितर्क करने से, ज्यादा लोगों से मिलने से ऊर्जा केन्द्रित नहीं हो पाती है। और हम अपना ध्यान पढ़ाई पर केन्द्रित नहीं कर पाते हैं।


अतः हल्का संगीत सुनने, शास्त्रीय संगीत सुनने, वाद्य यंत्रों का संगीत सुनने, अपनी श्वास-प्रवास पर ध्यान देने से हम एकाग्रचित महसूस करेंगे और अधिक ऊर्जा के साथ पढ़ाई कर सकेंगे।


योजनाबद्ध तरीके से करें तैयारी


बाड परीक्षा की सभी तैयारियों के बाद भी कभी-कभी छात्र उतना अच्छा नहीं कर पाते हैं जितना कि उन्हें करना चाहिए या वे कर सकते हैं। बोर्ड परीक्षा में अच्छे नम्बर लाने के लिए अच्छी तैयारी की योजना बनानी भी बहुत जरूरी है। अधिकतर छात्रों को परीक्षा से पहले पूरी तैयारी कर लने के बाद भी तनाव रहता है। परीक्षा का तनाव, अभिभावकों की अपेक्षाएँ, अपने साथियों से अच्छा करने की होड़ की वजह से छात्रों को तनाव घेर लेता है। इन सब का असर उनकी परीक्षा पर नकारात्मक प्रभाव के रूप में पड़ता है।


दसवीं के पाठ्यक्रम को आगे की शिक्षा के नींव के रूप में भी देखा जाना चाहिए क्योंकि आगे की समस्त पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाएँ काफी हद तक इन्हीं मूल तथ्यों पर आधारित होती हैं। अगर यही आधार कमजोर रह गया तो जीवन भर उस विषय को समझने में परेशानी होनी निश्चित है।


दसवीं कक्षा का अधिकांश शुरूआती समय छात्र इस सोच में निकाल देते हैं कि अंतिम समय में थोड़ा ज्यादा समय लगाकर सब कुछ तैयार कर लेंगे। लेकिन बाद में उनके हाथ-पाँव फूल जाते हैं जब वाकई कम समय शेष बचता है। वैसे अगर बोर्ड परीक्षा की बात नहीं भी करें तो भी इस परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव तो गंभीर छात्रों पर बना ही रहता है। इसके अलावा दसवीं के नतीजों से ही 11 वीं के शिक्षा की धारा तय होती है यह भी नहीं भूलना चाहिए ।


ऐसे में सवाल यह उठता है कि अभिभावकों, अध्यापकों और सगे-संबंधियों की अति उच्च अपेक्षाओं से उपजे इस प्रकार के मानसिक तनावों से कैसे मुक्ति पाई जाए और कैसे परीक्षा में श्रेष्ठ प्रदर्शन किया जाए।


हालांकि, अपने अनुभवों और मनोवैज्ञानिक सोच के आधार पर लोग इन तनावों से छुटकारा पाने के निराले तरीके ईजाद अवश्य कर लेते हैं। लेकिन, 'हिट एण्ड ट्रायल' फॉर्मूले से निकले इन तरीकों में अक्सर राहत कम और बाद की परेशानियाँ होती हैं। उदाहरण के लिए किसी तरह व्यसन की बात की जा सकती है।


तनावों से छुटकारा पाने का न तो कोई सार्वभौमिक फॉर्मूला है और न ही कोई ऐसी घुट्टी जिसे पीकर आप स्वयं को हल्का-फुल्का महसूस कर सकें। प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व, मानसिक हालात, संवेदनशीलता और भावनात्मक स्थितियों के अनुसार तनावों को शत-प्रतिशत समाप्त तो नहीं लेकिन काफी हद तक काबू में अवश्य किया जा सकता है।


इस तनाव से बचने के लिए जरूरी है कि छात्रगण अपने लक्ष्य को ध्यान में रखें और पूरे आत्मविश्वास के साथ, समय रहते ही योजनावद्ध तरीके से बोर्ड परीक्षा के लिए तैयारी शुरू कर दें।



इनका ध्यान रखेंगे तो लक्ष्य प्राप्ति में होंगे सफल


✅ योजनाबद्ध तरीके से पढ़ाई


परीक्षा में सफलता के लिए योजनाबद्ध तरीके से अध्ययन करना जरूरी है। विषयवार समय बाँटकर नित्य अध्ययन करना अधिक लाभदायक होता है।


✅ कोर्स का डिवाइडेशन


अच्छी सफलता के लिए कोर्स को तीन स्तरों में बाँटकर पढ़ाई करना चाहिए।


✅ घंटे महत्वपूर्ण नहीं है


परीक्षा में अच्छी सफलता के लिए दिन-रात पढ़ते रहना जरूरी नहीं है। पढ़ाई के लिए घंटे उतने अहम् नहीं होते जितना एकाग्रता और लक्ष्य को पाने की धुन। लिहाजा भले ही कम पढे, लेकिन नियमित, ईमानदारी और एकाग्रता से पढ़ें।


✅  नोट्स तैयार करना


अहम सवालों की लिस्ट बनाकर उनके नोट्स तैयार किये जाने चाहिए और उन्हें समझ कर याद करना परीक्षा में सफलता की कुंजी होती है।


✅  अध्ययन के साथ-साथ लिखना भी जरूरी


परीक्षा में विद्यार्थी को समय सीमा में प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं। इसके लिए लेखन का अभ्यास जरूरी है। ज्यादातर विद्यार्थी लिखने में कतराते हैं। यदि लेखन का अभ्यास निरंतर किया जाए तो परीक्षा में प्रश्नों के उत्तर देने में कठिनाई नहीं होती है।


✅ सभी विषयों की करें तैयारी


विद्यार्थी को शुरूआत से ही सभी विषय तैयार करना चाहिए। आमतौर पर देखा जाता है कि छात्र सभी विषयों पर ध्यान नहीं देते हैं। क्योंकि कोई कहता है, उसे गणित विषय समझ नहीं आती और कोई कहता है कि भौतिकी या रसायनशास्त्र समझ से परे हैं। ऐसे में आवश्यकता है कि जो विषय विद्यार्थी को अच्छे नहीं लगते उस पर ज्यादा या विशेष ध्यान दिया जाये। कमियों व कठिनाइयों को चिन्हित कर उन्हें दूर करना चाहिए। अगर विद्यार्थी कठिन लगने वाले विषयों पर पर्याप्त ध्यान नहीं देते हैं तो परीक्षा में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ेगा और उसको नकारात्मक प्रभाव अन्य विषयों में भी पड़ सकता है।


✅ आराम भी जरूरी है


परीक्षा के दिनों में भी शरीर व दिमाग को आराम देना जरूरी है, पूरी नींद सोना जरूरी हो जाता है।


✅  सिर्फ परीक्षा में अंक प्राप्ति के लिए न पढ़ें


यूँ तो परीक्षा में सफलता असफलता के पीछे विभिन्न विषयों में प्राप्त अंक ही होते हैं, लेकिन सिर्फ परीक्षा में ज्यादा-से-ज्यादा अंक-प्राप्ति के मद्देनजर की गई पढ़ाई हमेशा कामयाबी की गारंटी नहीं दे सकती। लिहाजा सिर्फ नम्बर लाने के लिए पढ़ाई न करें।


✅  एकाग्रता और निरंतरता


अध्ययन करते समय याद करने के लिए एकाग्रता की जरूरत होती है, दिमाग जितना एकाग्र होगा, उतना ही पढ़े गये विषय को समझने में आसानी होगी। योगासन और प्राणायाम इस दिशा में विद्यार्थियों के लिए लाभदायक होते हैं।


✅  दिनचर्या को न बदलें


किसी भी परीक्षा में सफलता एक दिन की मेहनत से संभव नहीं है। चाहे क्यों न आप 24 घंटे पढ़ते रहें। बल्कि सफलता के लिए एक निश्चित कार्य योजना जरूरी है, जिसका विद्यार्थियों को शुरू से ही नियमित रूप से पालन करना चाहिए। कई विद्यार्थी चिन्ता व असफलता के डर से परीक्षा के दिनों में खाना-पीना, खेलना, छोड़कर परीक्षा की तैयारी में जुट जाते हैं और कई शारीरिक-मानसिक समस्याओं को न्यौता दे देते हैं।



टाइम मैनेजमेंट है सबसे जरूरी


विद्यार्थी अपने नियमित दिनचर्या का पालन करें। देर रात तक जागकर पढ़ाई करने की न तो कोई जरूरत है और न ही उसका कोई विशेष फायदा ही होने वाला है। हर विषय पर ध्यान दें। आप जितना समय पढ़ने बैठें, पूरी एकाग्रता (कॉन्सन्ट्रेशन) बनाये रखें। टाइम मैनेजमेंट बहुत महत्त्वपूर्ण है। बच्चों को स्वाध्याय पर विशेष ध्यान देना चाहिए। हाँ, अगर कोई संदेह हो तो अपने स्कूल के शिक्षक से पूछ कर उसे दूर कर लें। विद्यार्थी पिछले दस सालों के पेपर्स का बारीकी से अध्ययन करें। बहुत से प्रश्न तो इनमें से ही आते हैं।


किन बातों का रखें ख्याल :


🌟  पढ़ाई के दौरान न तो बार-बार पढ़ने से उठें और न ही फोन पर बातें करें।


🌟  बहुत कम बचे हुए दिनों में सभी विषयों को बराबर समय दें। अन्यथा पढ़े हुए विषय याद नहीं रहेंगे।


🌟 परीक्षा को सामान्य रूप से लें। इस बात को मन से निकाल दें कि यह विषय मुश्किल है या यह विषय आसान है।

पूछे गये प्रश्न आपकी किताब के अन्दर से ही आयेगा और खुद से यह बार-बार कहें।


🌟  उच्चस्तरीय गाईड भारती बुक डिपो द्वारा प्रकाशित विहार सेकेण्ड़ी स्कूल एक्जामिनेशन गाईड से ज्यादा अभ्यास करें, लेकिन बहुत सारी किताबों में एक साथ न उलझें।


🌟  अक्सर छात्रों को लगता है कि कम खाने से नींद नहीं आएगी, लेकिन यह गलत है, पढ़ाई के लिए खाना-पीना भी बहुत जरूरी है। छात्र घर का बना खाना खाएँ। बाजार के बने खाद्य पदार्थों से जहाँ तक हो सके परहेज करें। अधिक-से-अधिक तरल पदार्थ लें। इसके साथ ही पूरी नींद लें।


🌟  पढ़ने के साथ ही लिखने का भी बराबर अभ्यास करें। स्कूल शिक्षकों द्वारा बताए गए सवाल को अच्छे से पढ़ें, साथ ही तीन घंटे बैठकर परीक्षा के माहौल में मॉडल टेस्ट पेपर को हल करें। अपनी तैयारी के दौरान पाठ कितने अंक का है इस बात का भी अवश्य ध्यान रखें।


🌟  कम अंक वाले विषय-वस्तु में बहुत ज्यादा न उलझें।


🌟  अगर आप किसी तरह के तनाव में हैं या आपको बेचैनी हो रही है तो उसे छुपाए नहीं। अभिभावक, शिक्षक या काउंसलर से जरूर बात करें। इससे आपका मन हल्का होगा और इस बेचैनी का कोई-न-कोई हल जरूर निकल आयेगा।


पुनरावलोकन (रिवीजन प्लान) की मदद जरूर लें


बोर्ड परीक्षाओं के नजदीक आते ही छात्र मौज-मस्ती छोड़कर परीक्षाओं की तैयारी में जुट जाते हैं। अभिभावक भी इस दौरान छात्रओं को परीक्षाओं के तनाव से मुक्त रहने के लिए उन पर विशेष ध्यान देते रहे, जिसमें सेहतमन्द भोजन से लेकर छात्रों को पूरा आराम या नींद मिले, इसका अभिभावक ख्याल रखें।


परीक्षाओं से ठीक पहले बच्चों को कुछ नया नहीं पड़ना चाहिए।


पूरे साल जो उन्होंने पढ़ा है सिर्फ उसकी पुनरावलोकन (रिवीजन) कर परीक्षाओं में बड़ी आसानी से अच्छे अंक प्राप्त किये जा सकते हैं। सभी विषयों की रिवीजन बेहद जरूरी है। प्रत्येक विषय को रिवीजन के लिए बच्चों को टाइम टेबल बनाना चाहिए। साथ ही बच्चों को रात में देर रात तक जागकर पढ़ने की बजाए सुबह जल्दी उठकर पढ़‌ना चाहिए। यह बहुत जरूरी है कि जब आप किसी विषय की रिवीजन कर रहे हों तब आपका दिमाग तन्दुरुस्त हो, और सुबह का वक्त याद करने के लिए सबसे बेहतर होता है।


रात की अच्छी नींद के बाद सुबह दिमाग पूरे दिन के मुकाबले सबसे ज्यादा गति से काम करता है। इसके अलावा बच्चों को लगातार पाँच-छह घंटे तक नहीं पढ़ना चाहिए। कई घंटों तक लगातार पढ़ने से दिमाग तो थक ही जाता है, साथ ही उसकी क्षमता पर भी दबाव पड़ता है और वह अपनी पूर्ण क्षमता के अनुसार काम नहीं कर पाता।


बच्चों को कोशिश करनी चाहिए कि दो घंटे पढ़ने के बाद कुछ मिनट का आराम लें और फिर दोबारा पढ़ने बैठें। ऐसा करने से न तो दिमाग में थकान महसूस होगी और न ही उसकी क्षमता कम होगी। रिवीजन करने के बाद बच्चों को सभी विषयों के कम-से-कम दो या तीन सैम्पल पेपर जरूर हल कर लेने चाहिए। इससे उन्हें काफी लाभ मिलेगा और उन्हें अपनी गति का भी अनुमान हो जाएगा। बोर्ड परीक्षाओं की तैयारियों के लिए छात्र तरह-तरह के तरीके अपनाकर तैयारी करते हैं। इसके लिए स्कूल भी कुछ समय पहले ही कक्षाओं में पुनरावलोकन (रिवीजन प्लान) के तहत् तैयारी करवानी शुरू कर देते हैं, कहीं छात्र नोट्स बनाकर तैयारी करते हैं तो कहीं दिनचर्या के हिसाब से प्रत्येक विषय को बराबर समय देकर अच्छे अंक प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ ही कमजोर विषयों की तैयारी के लिए समझकर अध्ययन करने के साथ-साथ लिखकर भी अभ्यास करना बच्चों के लिए फायदेमन्द होता है।


पुनरावलोकन के दौरान छात्रों को चाहिए कि वे पूर्व के परीक्षा में आये प्रश्नों को विषयवार ढंग से हल करना चाहिए। उच्चस्तरीय गाईड भारती बुक डिपो द्वारा प्रकाशित बिहार सेकेण्ड्री स्कूल एक्जामिनेशन गाईड एवं उसके साथ दिये छात्रोपयोगी उपहार पुनरावलोकन में छात्रों के लिए विशेष रूप से सहायक सिद्ध होंगे। पुनरावलोकन के समय गाईड के साथ Quick Review छात्रों को कम समय में अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगा।


परीक्षा की तैयारी : क्या करें, क्या न करें ?


परीक्षा की तैयारी कैसे करनी चाहिए, इस बात को लेकर छात्र, अभिभावक और शिक्षकों के बीच हमेशा मतभेद की स्थिति देखी जा सकती है। सबके विचार और सोच अपने व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित होते हैं। इनमें क्या सही है और क्या गलत इस बात का निर्धारण कर पाना मुश्किल है।


सबसे बड़ी बात यह भी है कि परीक्षा तैयारी का कोई निश्चित स्वरूप या फॉर्मूला भी नहीं होता है जिसके जरिए प्रभावी या निष्प्रभावी परीक्षा तैयारी के तरीकों का आकलन हो सके।


संगीत सुनते हुए पढ़ाई


कई लोगों का मानना है कि इस प्रकार पढ़ने से ध्यान केन्द्रित करने में काफी मदद मिलती है। हो सकता है


कि यह बात कुछ फीसदी लोगों पर सच हो लेकिन इस बारे में वैज्ञानिक तर्क यही है कि दिमाग की ग्रहण करने या ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता असीमित नहीं होती है ऐसे में पढ़ाई के साथ संगीत से न सिर्फ सामान्य तौर पर पूरी तरह से ध्यान केन्द्रित नहीं हो पाता बल्कि भटकने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगता।



शैक्षणिक कम्प्यूटर सी० डी०


निस्संदेह इस प्रकार की सी० डी० कई बार कठिन विषयों को ग्राफिक्स या एनीमेशन के माध्यम से समझाने का काम बखूबी करती हैं। लेकिन परीक्षा तैयारी के अंतिम दौर में नोट्स या पाठ्य-पुस्तक, अपनी कक्षा कार्य की कॉपी के बजाय इस तरह की डिजिटल पढ़ाई करने से ज्यादा फायदा नहीं हो पाता। क्योंकि उनमें सही उत्तरों का फॉर्मेट नहीं होता है।


बिना नोट्स सीधे पाठ्य-पुस्तक से तैयारी


ऐसा युवा भी देखने में आते हैं जो नोट्स बनाने में विश्वास नहीं रखते और सीधे पाठ्य-पुस्तकों से एक या दो बार अध्यायों को पढ़ लेने को ही अंतिम तैयारी मानते हैं। इस प्रकार की पढ़ाई से दिमाग में कितना संजोकर रखा जा सकता है यह समझना कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है।


बिना लिखे पढ़ाई की आदत


कम्प्यूटर और इंटरनेट के इस डिजिटल युग में युवाओं की लिखने की आदत लगभग समाप्त हो चुकी है। ऐसे में सही तरह से प्रश्नों के उत्तर लिखना या नोट्स बनाना या रिविजन के दौरान लिखना नहीं के बराबर ही दिखाई पड़ता है। इस गलत प्रवृत्ति का भयंकर नुकसान उन्हें परीक्षा हॉल में लगातार 3 घंटे तक नहीं लिख पाने, लिखने में थकावट महसूस करने या

Post a Comment

Previous Post Next Post