सुशील मोदी का निधन

सुशील मोदी का निधन

 सुशील मोदी का निधन



बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम व पूर्व राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी का सोमवार की रात 9.30 बजे दिल्ली में निधन हो गया। वे 4 दिनों से दिल्ली एम्स में भर्ती थे। 72 वर्षीय सुशील मोदी गले के कैंसर से पीड़ित थे। उन्होंने 3 अप्रैल को गले के कैंसर के बारे में जानकारी दी थी। जेपी आंदोलन से जुड़े रहने वाले मोदी का राजनीति जीवन छात्र राजनीति से शुरू हुआ था। मंगलवार की सुबह उनका पार्थिव शरीर पटना आएगा।

नंद किशोर यादव


बिहार विधानसभा अध्यक्ष


विषयों की गहराई तक जाना, उसे समझने के लिए संबधित विषय से जुड़े किसी भी व्यक्ति से जानकारी लेना और तब उस विषय पर बात को तर्कपूर्ण ढंग से रखना...., ऐसी कई खासियत थी सुशील मोदी में। ऐसा राजनीतिक व्यक्ति मेरी समझ से पिछले 5 दशक में बिहार में तो नहीं हुआ। जो दायित्व मिले उस पर 100 प्रतिशत खरा उतरना और उत्तरदायित्व को तब तक निभाना जब तक कि उसे पार्टी नेतृत्व द्वारा मना न कर दिया जाए। मन की बात न हो तो पार्टी फोरम पर खुलकर विरोध करना पर नेतृत्व के फैसले के खिलाफ एक कदम भी नहीं चलना, ये गुण आजकल के विरले नेताओं में मिलेगा।


चाहे 1971 से 74 तक पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ की राजनीति हो, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का फुलटाइम प्रचारक का दायित्व हो, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का प्रदेश से लेकर केंद्र तक का दायित्व हो या 1989-90 में भाजपा में आ जाने के बाद राज्य से लेकर केंद्रीय पदाधिकारी के रूप में काम हो। हर काम को उन्होंने बखूबी निभाया। हमारे 54 साल पुराने साथी सुशील भाई मोदी का न तो कोई सानी था और न ही कोई आगे दिख रहा है। अद्वितीय, अद्भुत और गजब की राजनीतिक, सामाजिक और सबसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक समझ रखने वाला मानुष चला गया। रात में दिल्ली से उनके परिजन ने बिहार के इस लाल के निधन की दुखद सूचना दी। कुछ देर तो समझ में ही नहीं आया कि क्या हो गया पर उनसे जुड़ी पुरानी विस्मृतियों में खो गया। 1973-74 का वो दौर जब पटना यूनिवर्सिटी में उनके समझ-नॉलेज - की तूती बोलती थी। छात्र आंदोलन शुरू हुआ तो वो पटना सेंट्रल जेल - में डेढ़ साल रहे। मैं अंडरग्राउंड - होकर अखबार निकालता था। कोई

जेल में उनसे मिलने जाता तो वो कुछ संदेश हमारे पास पहुंचवाते।

बाद में बिहार में जनता पार्टी की सरकार बनी तो वो एबीवीपी और आरएसएस के लिए काम करने लगे। काम करते-करते 1983 में एबीवीपी के राष्ट्रीय महासचिव बन गए। 1990 में विधायक बने और श्रद्धेय कैलाशपति मिश्र और गोविंदाचार्य के सानिध्य में भाजपा की विस्तार पर काम करने लगे। उनके जुझारूपन का नतीजा था कि वर्ष 1996 में पार्टी ने विधानसभा में उन्हें नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेवारी दी और ये दायित्व मिलते ही उन्होंने वर्तमान सीएम नीतीश कुमार के साथ मिलकर तब की राज्य सरकार के खिलाफ ऐसा संघर्ष छेड़ा कि वर्ष 2005 में राज्य में एनडीए सरकार बना कर ही दम लिया। नीतीश कुमार और सुशील मोदी की जोड़ी को राजनीतिक गलियारे मे राम लक्ष्मण की जोड़ी कही जाने लगी। सरकार में उप मुख्यमंत्री के नाते उन्होंने जो काम किया वो बताने की जरुरत नहीं हैं। बिहार के विकास की बात जब जब सामने आएगी मोदी जी यादे किये जाएंगे। (विधानसभा अध्यक्ष नन्दकिशोर यादव और सुशील मोदी ने 54 साल साथ-साथ काम किया।)

* पार्टी में अपने मूल्यवान सहयोगी और दशकों से मेरे मित्र रहे सुशील मोदी के असामयिक निधन से अत्यंत दुख हुआ है। बिहार में भाजपा के उत्थान और उसकी सफलताओं के पीछे उनका अमूल्य योगदान रहा है। - नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

* सुशील जी जेपी आंदोलन के सच्चे सिपाही थे। उन्होंने हमारे साथ काफी वक्त काम किया। मैनें आज सच्चा दोस्त और कर्मठ राजनेता खो दिया। उनके निधन से राजनीतिक-सामाजिक क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। - नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री

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