अल्बर्ट आइंस्टीन ने यह प्रसिद्ध पत्र अपनी पुत्री को लिखा थाl प्रेम ही प्रकाश है और प्रेम ही गुरुत्वाकर्षण भी

अल्बर्ट आइंस्टीन ने यह प्रसिद्ध पत्र अपनी पुत्री को लिखा थाl प्रेम ही प्रकाश है और प्रेम ही गुरुत्वाकर्षण भी

 



प्रिय लीजरेल,


जब मैंने सापेक्षता का सिद्धांत प्रस्तुत किया था तो बहुत कम लोग उसे समझ पाए थे। लेकिन एक अत्यंत शक्तिशाली शक्ति ऐसी भी है, जिसका अभी तक विज्ञान कोई भी औपचारिक स्पष्टीकरण नहीं ढूंढ पाया है। यह शक्ति हम सभी के भीतर है और यह हम सभी को निरंतर नियंत्रित करती है।


यह सार्वभौमिक शक्ति प्रेम है। जब वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के एकीकृत सिद्धांत की खोज की तो वे सबसे शक्तिशाली अदृश्य शक्ति को भूल गए। जबकि प्यार ही प्रकाश है और प्यार ही गुरुत्वाकर्षण भी है। यह इन अर्थों में एक महान शक्ति है कि यह हमारे पास मौजूद सर्वश्रेष्ठ को कई गुना बढ़ा देता है, और मानवता को अंधे स्वार्थ में नष्ट नहीं होने देता।


प्रेम प्रकट होता है और प्रकट होना चाहता भी है। यह शक्ति जीवन को अर्थ देती है। यह वह परिवर्तन है, जिसे हमने बहुत लंबे समय तक नजरअंदाज कर दिया है, शायद इसलिए कि हम प्यार से डरते हैं। क्योंकि यह ब्रह्मांड में मौजूद एकमात्र ऐसी ऊर्जा है, जिसे मनुष्य ने अपनी इच्छानुसार चलाना नहीं सीखा है।


ब्रह्मांड की अन्य ताकतों पर नियंत्रण पाने में विफलता के बाद, हमारे लिए यह जरूरी हो गया है कि हम खुद को दूसरी तरह की ऊर्जा से पोषित करें... अगर हम जीवन में अर्थ ढूंढना चाहते हैं, अगर हम दुनिया को बचाना चाहते हैं, तो प्यार ही एकमात्र उत्तर है। हर व्यक्ति के भीतर प्रेम का एक छोटा लेकिन शक्तिशाली जनरेटर है, जिसकी ऊर्जा अभिव्यक्त होने की प्रतीक्षा कर रही है।


जब हम इस ऊर्जा को देना और प्राप्त करना सीख जाते हैं, तभी हम जान पाते हैं कि प्रेम हर चीज से परे जाने में सक्षम है, क्योंकि वह जीवन का सार है।


- तुम्हारा पिता, अल्बर्ट!

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