बिहार की शिक्षा प्रणाली किस पर आधारित थी?
बिहार की शिक्षा प्रणाली प्रारंभ में वेदों, शास्त्रों और दर्शन पर आधारित थी
'22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग कर अंग्रेजों ने बिहार का गठन किया था। मगर इसका प्राचीन इतिहास अथर्व वेद के काल से है। तब इस भू-भाग का नाम 'बिहार' न होकर 'मगध' हुआ करता था। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (पटना) थी। तब मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृह (नालंदा जिले का राजगीर) हुआ करती थी। बाद में हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु (492-460 ईसा पूर्व) ने अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र में स्थापित की। 16वीं शताब्दी में अंग्रेजों की एंट्री की हुई तो 'पाटलिपुत्र' से 'पत्तन' होते हुए आज का आधुनिक 'पटना' नाम पड़ा।'
बिहार ज्ञान की भूमि है। यह प्रदेश शैक्षणिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक रूप से संपन्न है। यहां की मिट्टी शैक्षणिक रूप से काफी उर्वरा है। यहां के लोग ईमानदार एवं संघर्षशील होते हैं। पढ़ाई के प्रति यहां के युवाओं में गहरी रुचि रहती है, तभी तो देश की किसी भी परीक्षा में सबसे अव्वल बिहारी छात्र होते हैं।
बिहार प्राचीनकाल से ही शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहां की शिक्षा ने पूरे भारत का स्वर्णिम इतिहास बनाने में योगदान दिया है। प्राचीन काल में बिहार विशाल साम्राज्यों, शिक्षा केंद्रों और संस्कृति का गढ़ था। एक समय बिहार शिक्षा के सर्वप्रमुख केंद्रों में गिना जाता था। नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय और ओदंतपुरी विश्वविद्यालय प्राचीन बिहार के गौरवशाली अध्ययन केंद्र थे। इन प्राचीन विश्वविद्यालयों में दुनिया के कोने-कोने से विद्यार्थी पढ़ाई करने के लिए बिहार आते थे। बिहार की शिक्षा प्रणाली प्रारंभ में वेदों, शास्त्रों और दर्शन पर आधारित थी।
संस्कृत और फारसी के अध्ययन के लिए यह प्रसिद्ध रहा है।
मानव इतिहास के आदिकल से ही शिक्षा का विविध भांति से विकास होता रहा है। प्रत्येक देश समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए समयानुसार शिक्षा प्रणाली विकसित
करता है ताकि उसकी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान बनी रहे। सभ्यता के विकास के साथ-साथ शिक्षा ने विकास की प्रक्रिया में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। मनुष्य के विकास की अवस्थाएं जैसे-जैसे बदलती रही, शिक्षा का उद्देश्य और विकास भी बदलता गया। शिक्षा के बारे में स्वामी विवेकानंद ने कहा है-शिक्षा एक राष्ट्र की प्रगति का प्रतीक है। यदि आप किसी देश के उन्न्यन और अवनयन का काल जानना चाहते हैं, तो इसे देश की शिक्षा के इतिहास में खोजिए।
बिहार में शैक्षणिक माहौल और इतिहास की चर्चा होगी तो महान खगोलविद् और गणितज्ञ आर्यभट्ट को कैसे भुलाया जा सकता है, जिन्होंने न केवल शून्य का आविष्कार किया, बल्कि ब्रह्मांड के कई रहस्यों को उजागर कर दुनिया को चौंका दिया था। उस महान आर्यभट्ट की कर्मभूमि बिहार रही है। जब छठी शताब्दी में महान खगोलविद् आर्यभट्ट नालंदा ज्ञान विश्वविद्यालय शोध करने आए थे, - उस दौरान वे अपने 25 शिष्यों के साथ तारों की दूरी और ग्रहों की - चाल मापने का शोध करते थे। - वर्षों तक अपनी वेधशाला बनाई और तारों की गणना किया करते थे, इसीलिए उस गांव का नाम पड़ - गया तारेगना। इसी भूमि से उन्होंने - कई चौंकाने वाले रहस्यों को देश- दुनिया के बारे में बताया।
बिहार में शिक्षा की अलख आज भी बड़े पैमाने पर जलायी जा रही है। जिस नालंदा विश्वविद्यालय का वजूद मिटा दिया गया था, उसको पुनः नीतीश सरकार ने स्थापित कर शिक्षा के क्षेत्र में नव परिवर्तन लाया है। इसके अलावा कई अन्य विश्वविद्यालयों की स्थापना बिहार में की गई। आज बिहार बड़े परिवर्तन की राह पर है, जहां वन डे एग्जाम से लेकर मेडिकल, इंजीनियरिंग, यूपीएससी जैसी अनेक तैयारियों का पटना केंद्र बन गया है। यहां के छात्र मेधावी होते हैं, जो अपनी मेहनत के बूते परचम लहरा रहे हैं। पढ़ाई में आर्थिक विपन्नता न आए इसके लिए राज्य सरकार द्वारा स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड सहित छात्र-छात्राओं को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहन और सहयोग कारगर साबित हो रहा है। पुरातन काल में जिस बिहार में बाहर से छात्र पढ़ने के लिए आया करते थे, उसी परिपाटी को पुनर्जीवित करते हुए बिहार की मिट्टी ने पुनः अपनी शैक्षणिक स्मिता को कायम कर लिया है। आज उसी का नतीजा है कि बिहार की भूमि पर देश-विदेश से छात्र शिक्षा ग्रहण करने के लिए आने लगे हैं यह हमारे लिए गौरव की बात है। बिहार सदियों से शिक्षा की भूमि रही है, आगे भी इसकी अस्मिता बरकरार रहे यही कामना है।
- मुरली मनोहर श्रीवास्तव
Post a Comment