ज़िंदगी के अंत तक होशियार, तेज़ - तर्रार कैसे रहें?

ज़िंदगी के अंत तक होशियार, तेज़ - तर्रार कैसे रहें?

 


मैं सस्पेंस नहीं रखूंगा। जवाब यह रहा। बढ़ती उम्र के साथ अपना सर्कल भी बढ़ाते जाएं। बड़ी उम्र में सारी दुनिया आपका परिवार है। दुनिया के साथ चलें, जानें कि दुनियाभर में क्या चल रहा है, इसकी चर्चा करें। यह जानें कि नई पीढ़ी के खेल कौन-से हैं, उनकी तुलना अपने जमाने के खेलों से करें। नए शोधों और उनके फ़ायदों के बारे में जानने को उत्सुक रहें। हर छोटी-छोटी चीजों को लेकर जिज्ञासु रहें। किसी एक अंग के खराब होने पर कोई गतिविधि बंद करनी पड़े, तो दूसरी गतिविधि शुरू कर दें। जैसे, अगर 99 की उम्र में हार्ट स्ट्रोक की वजह से ट्रेकिंग न कर सकें, तो किताब लिखना शुरू कर दें। उस किताब में 99 तक जीने के अपने अनुभव बता सकते हैं! रोज कुछ पढ़ें और पैदल चलें। यह खाने की ही तरह अनिवार्य होना चाहिए। आप या आपके बच्चे किताबें नहीं खरीद सकते, तो अखबार खरीदें। यह ताजा जानकारी पाने का सबसे सस्ता साधन है। अगर अखबार भी नहीं खरीद सकते नजदीकी सार्वजनिक लाइब्रेरी जाकर अखबार पढ़ें।


यह मेरी सलाह नहीं है। बल्कि 110 साल जीने वाले मोरी मार्कऑफ़ ने ताउम्र - ऐसा किया। उनका बीती 3 जून को निधन हो गया। उनकी दिनचर्या के बारे में उनके बेटा-बेटी ने बताया, जिनकी उम्र 80 साल से ज्यादा है। मार्कऑफ़ का जन्म, 1914 में न्यूयॉर्क की एक गरीब बस्ती में, यहूदी प्रवासी परिवार में हुआ। वे आठवीं तक ही पढ़ पाए। लेकिन सीखने का सिलसिला जिंदगीभर चला। प्रशिक्षित मैकेनिक मार्कऑफ़ ने लॉसएंजिल्स में बिजनेस शुरू किया और 1938 में बैटी से शादी की। अपने 81+ साल के शादीशुदा जीवन में, उन्होंने एक काम कभी बंद नहीं किया। वे दोनों रोज हाथ पकड़कर, पांच किमी पैदल चलते थे। यह सिलसिला 2019 तक चला, जब 103 वर्षीय बैटी का निधन हो गया।


मार्कऑफ़ और बैटी ने अपने लंबे जीवन में, बेटे स्टीवन और बेटी ज्यूडिथ हैनसन का लालन-पालन किया। वे दुनियाभर में घूमे, पोता-पोतियों और परपोते- पोतियों संग खूब खेले। इस दौरान मार्कऑफ़ ने जिज्ञासा बनाए रखी। उन्होंने विकिपीडिया के ज्ञान में गोते लगाए और नई जानकारी की सबसे चर्चा की। उनका बहुत बड़ा फ्रेंड सर्कल था। उन्होंने मूर्तियां बनाईं, ब्लॉग लिखे, तस्वीरें खीचीं। फिर 99 की उम्र में हार्ट अटैक आया, तो ट्रेकिंग बद कर किताबें लिखना शुरू किया। जब अखबार पढ़ने में परेशानी होने लगी, तो बेटी ने आईपैड दिया। बेटी ज्यूडिथ को लगता है कि उनके पिता के तेज दिमाग के पीछे, दुनिया के साथ उनकी सक्रियता थी।


और अब वैज्ञानिक ज्यूडिथ की इसी सोच पर अध्ययन कर रहे हैं। वे मार्कऑफ़


के डोनेट किए गए दिमाग पर शोध करके उम्र बढ़ने की प्रक्रिया समझ रहे हैं। वे पता कर रहे हैं कि क्यों कुछ लोगों को, डिमेंशिया, सोचने-समझने की क्षमता में कमी, पार्किंसन, अल्जाइमर और अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियां होती हैं, जबकि मार्कऑफ़ जैसे कुछ लोग जीवन के अंत तक तेज्ज-तर्रार बने रहते हैं। ब्रेन डोनर प्रोजेक्ट की शुरुआत 2018 में हुई थी। यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ न्यूरोबायोबैंक, ऐसे अध्ययनों के लिए दुनियाभर से दिमाग के टिश्यू (उतक) इकट्ठा करने के लिए शोधकर्ताओं शोधकर्ताओं के साथ काम कर रहा है। टिश्य की मदद से किसी की

व्यक्तिगत पहचान के बारे में अध्ययन किया जा सकता है। 

फंडा यह है कि कभी भी ऐक्टिव यानी सक्रिय रहना बंद न करें। यह न सोचें कि क्या पढ़ रहे हैं, बस पढ़ें। इसकी परवाह न करें कि आपका लिखा कौन पढ़ेगा, बस लिखें। यह न सोचें कि आपका शौक कैसा है, बस शौक होना चाहिए। और अंत में, जब तक हो सके, पैदल चलते रहें। इससे जीवन के आखिर तक होशियार बने रहेंगे।

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